जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है। जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है।
चाहा नहीं था तुमसे कुछ भी, बस एक स्नेह का बंधन था, चाहा नहीं था तुमसे कुछ भी, बस एक स्नेह का बंधन था,
सजाया था एक ख्वाब उसकी हँसी से घर को सजाने का। सजाया था एक ख्वाब उसकी हँसी से घर को सजाने का।
था पास मेरे हर कोई मेरा अपना , जो मुझे रो रोकर जगा रहा था था पास मेरे हर कोई मेरा अपना , जो मुझे रो रोकर जगा रहा था
उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है। उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है।
कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। मधुरिम मधुरिम कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। म...